
नई दिल्ली: 25 जून 1975 यह तारीख भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले धब्बे के तौर पर हमेशा याद रखी जाती है. पचास साल पहले, इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने का फैसला किया था.
इस एक आदेश ने देश में मौलिक अधिकारों को समाप्त कर दिया, प्रेस की आज़ादी छीन ली और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कुचल दिया गया.
21 महीने तक चला यह आपातकाल लोकतंत्र के इतिहास में सबसे गंभीर संकट बन गया. जो भी इस फैसले के खिलाफ बोला—वह या तो जेल गया या सत्ता के कहर का शिकार बना. मगर इंदिरा की तानाशाही के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले कई ऐसे चेहरे उभरे, जो बाद में देश की राजनीति की सबसे बड़ी शख्सियत बन गए.
आइए जानते हैं कि आपातकाल के विरोध से चमके वो चेहरे अब कहां हैं और क्या कर रहे हैं.
कैसे हुआ आपातकाल का ऐलान?
25 जून 1975 को इंदिरा गांधी सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की. इसके बाद रातोंरात अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडीस, लालू यादव, नीतीश कुमार जैसे नेता गिरफ्तार कर लिए गए.
एल.के. आडवाणी: तानाशाही के खिलाफ 19 महीने जेल
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी उस दौर के प्रमुख विरोधी चेहरों में थे. गुजरात में कांग्रेस का किला ढहाने में उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई थी. आपातकाल के दौरान उन्हें 19 महीने जेल में रहना पड़ा. चार बार राज्यसभा और पांच बार लोकसभा सदस्य रहे आडवाणी अब राजनीति से दूर हैं और खराब स्वास्थ्य के चलते पार्टी की सलाहकार भूमिका तक सीमित हैं.
लालू यादव: जेल से संसद तक
बिहार के लालू यादव को आपातकाल ने पहली बार राष्ट्रीय पहचान दी. मीसा कानून के तहत जेल गए, वहीं उनकी बेटी का जन्म हुआ और उन्होंने नाम रखा—मीसा भारती. 29 साल की उम्र में सांसद बने लालू बाद में बिहार के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे. फिलहाल वह आरजेडी प्रमुख हैं और अपने बेटे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम में लगे हैं.
सुब्रमण्यम स्वामी: संसद में घुसने वाला ‘अंडरकवर विरोधी’
आपातकाल के दौरान पुलिस की गिरफ्त से बचकर अमेरिका भाग गए सुब्रमण्यम स्वामी ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से इंदिरा सरकार की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोला. 10 अगस्त 1976 को वे चुपके से संसद भवन में दाखिल हुए, बहस में भाग लिया और फिर लौट गए. वे बीजेपी से जुड़े रहे पर अब साइडलाइन हो चुके हैं.
नीतीश कुमार: नजरबंदी से मुख्यमंत्री पद तक
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मीसा के तहत 1976 में गिरफ्तार किया गया था. इस गिरफ्तारी पर पुलिस को इनाम भी मिला था. जेल से बाहर आने के बाद वे जॉर्ज फर्नांडीस के साथ समता पार्टी के सह-संस्थापक बने और आगे चलकर जेडीयू का नेतृत्व किया. अब भी वे बिहार की राजनीति के धुरी बने हुए हैं.
जयप्रकाश नारायण: आपातकाल के प्रतीक
जेपी आंदोलन ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. जयप्रकाश नारायण ने समाजवादी और दक्षिणपंथी नेताओं को एकजुट कर इंदिरा सरकार के खिलाफ मजबूत मोर्चा बनाया. 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी, पर जेपी का 1979 में निधन हो गया.
अटल बिहारी वाजपेयी: जेल से प्रधानमंत्री पद तक
आपातकाल में 18 महीने जेल में रहे अटल बिहारी वाजपेयी 1977 में जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री बने. आगे चलकर वे तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने और 2015 में उन्हें भारत रत्न से नवाज़ा गया. उनका निधन 6 अगस्त 2018 को हुआ.
जॉर्ज फर्नांडीस: फकीर से फौलादी नेता तक
फर्नांडीस ने आपातकाल में भेष बदलकर देशभर में भ्रमण किया. डायनामाइट विस्फोट की योजना में गिरफ्तार हुए और 1977 में जेल से ही चुनाव जीत गए. वे कई बार सांसद और मंत्री बने और 2019 में उनका निधन हुआ.
अन्य नायक: मुलायम, शरद यादव और पासवान
मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, रामविलास पासवान, चंद्रशेखर, मोरारजी देसाई और चरण सिंह जैसे नेताओं ने भी आपातकाल का विरोध किया और बाद में सत्ता में आए. मोरारजी और चरण सिंह तो प्रधानमंत्री भी बने.
निष्कर्ष:
आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा सबक रहा. यह बताता है कि जब सत्ता तानाशाही की राह पर चलती है, तब जनता ही आखिरी फैसला करती है. जिन नेताओं ने इमरजेंसी का विरोध किया, उन्होंने इतिहास रचा. 50 साल बाद भी वो दौर आज की पीढ़ी को लोकतंत्र की असली ताकत समझाने के लिए काफी है.