
नई दिल्ली: प्रयागराज में जातीय तनाव एक बार फिर बढ़ता दिखाई दे रहा है. अहीर रेजिमेंट द्वारा ब्राह्मणों के गांव को बंधक बनाये जाने के बाद भीम आर्मी कार्यकर्ताओं ने शहर में सवर्ण वर्ग के दुकानदारों के प्रतिष्ठानों पर तोड़-फोड़ की.
घटना रविवार को सामने आई, जब आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के नेता चंद्रशेखर आजाद को परिजन मुलाकात के प्रयास पर मामूली हाउस अरेस्ट के बाद पुलिस ने रोक लिया.
चंद्रशेखर आजाद के समर्थकों ने पुलिस कार्रवाई का विरोध कर जमकर प्रदर्शन किया—वाहन क्षतिग्रस्त हुए, सड़कों पर पत्थरबाज़ी हुई और चारों ओर अफरातफरी फैल गई.
प्रयागराज-करछना इलाके में हिंसक झड़पों के बीच, पुलिस ने 50 से अधिक उपद्रवियों को गिरफ्तार किया और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पीएसी तथा आरएएफ को बुलाया. शाम तक चंद्रशेखर को वाराणसी भेज दिया गया.
भीम आर्मी ने फोड़े सवर्ण दुकानदारों के प्रतिष्ठान
भीम आर्मी कार्यकर्ताओं ने विशेष रूप से सवर्ण दुकानदारों के प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया. करछना क्षेत्र की भडेरवा बाजार में हिंसा की तस्वीरों और वीडियो में दुकानों को तोड़ते और पत्थर फेंकते कार्यकर्ता दिखे. स्थानीय लोग भयभीत हैं और बाजार में खामोशी पसरी हुई है.
चंद्रशेखर आजाद का हाउस अरेस्ट, समर्थन में हिंसक विरोध
मिली सूचना के अनुसार, चंद्रशेखर आजाद प्रयागराज में उन परिवारों से मिलने वाले थे जो हालिया घटनाओं—यादवों और ब्राह्मणों पर हमलों—में प्रभावित हुए थे. उन्हें पुलिस ने सर्किट हाउस में ही रोक लिया. गिरफ्तारी के विरोध में भीम आर्मी समर्थकों ने सड़कों पर प्रदर्शन शुरू किया.
हिंसा में हुए वाहन क्षति, गिरफ्तारी संकट में भीड़
प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बसों व 7 निजी वाहनों को क्षतिग्रस्त किया. पुलिस ने 50 से अधिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया. पीएसी और आरएएफ सक्रिय होकर शांति बहाल करने में जुटे हैं.
अहीर–भीम–करणी का जातीय टकराव
उत्तर प्रदेश में जातीय तनाव पहले भी कई बार सामने आ चुका है. अहीर रेजिमेंट, भीम आर्मी और करणी सेना जैसे समूहों के बीच यह गतिरोध शहर की सुरक्षा को चुनौती दे रहा है. ब्राह्मण–यादव संघर्ष की ताजा घटनाओं से बहुसंख्यक वर्गों में तनाव सिर उठा रहा है.
जातीय विश्लेषण: ब्राह्मण-यादव टकराव
उत्तर प्रदेश की जातीय संरचना (ब्राह्मण 12‑14%, ठाकुर 7‑8%, यादव 9‑11%, दलित 25%) हमेशा से राजनीतिक रणनीति का केंद्र रही है.
समाजवादी और बीजेपी, दोनों ही जातीय समीकरणों को साधने की कोशिशों में जुटे हैं, लेकिन कमजोर दलित‑ओबीसी संघटनाओं के बीच यह टकराव समाजिक शांति को प्रभावित कर रहा है.