
नई दिल्ली: झारखंड के दुमका जिले में स्थित ऐतिहासिक गांव भोगनाडीह में उस समय हड़कंप मच गया जब हूल दिवस कार्यक्रम से ठीक पहले स्थानीय ग्रामीणों और पुलिस के बीच तीखी झड़प हो गई.
मामला इतना बढ़ गया कि पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले तक छोड़ने पड़े. यह घटना उस समय हुई जब लोग सिदो-कान्हू के बलिदान दिवस को मनाने के लिए भोगनाडीह पहुंचे थे.
हूल दिवस से पहले कार्यक्रम स्थल पर हंगामा
घटना मंगलवार सुबह की है. ग्रामीणों का आरोप था कि सरकारी आयोजन में स्थानीय लोगों की भागीदारी को नजरअंदाज किया गया, और उन्हें एक दर्शक की भूमिका में सीमित कर दिया गया है. इसी को लेकर जब ग्रामीणों ने कार्यक्रम स्थल पर विरोध जताना शुरू किया, तो प्रशासन ने उन्हें हटाने का प्रयास किया. बात बढ़ी और जल्द ही स्थिति बेकाबू हो गई.
पुलिस ने पहले चेतावनी दी, फिर लाठीचार्ज
जिला प्रशासन का कहना है कि शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पहले प्रदर्शनकारियों को चेतावनी दी गई थी. लेकिन जब विरोध उग्र हो गया और कुछ प्रदर्शनकारियों ने मंच की ओर बढ़ने की कोशिश की, तो पुलिस को मजबूर होकर लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लेना पड़ा. इस दौरान कुछ ग्रामीण घायल भी हुए, जिनका इलाज स्थानीय अस्पताल में चल रहा है.
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप शुरू
घटना के बाद राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है. झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने पुलिस की कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा कि सरकार की असंवेदनशीलता ने हूल दिवस जैसे ऐतिहासिक दिन को भी विवादों में घसीट लिया. वहीं भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि JMM सिर्फ प्रतीकात्मक राजनीति करती है और आदिवासी हितों की अनदेखी करती है.
स्थानीय लोगों का आक्रोश
ग्रामीणों का कहना है कि हूल दिवस उनका आत्मसम्मान है, और इसमें उनकी भूमिका को सीमित करना इतिहास और बलिदान के साथ अन्याय है. कई स्थानीय युवाओं ने मंच के पास बैठकर धरणा भी शुरू कर दिया, जिसे पुलिस ने बाद में हटाया.
क्या है हूल दिवस?
हूल दिवस 30 जून को मनाया जाता है, जब 1855 में सिदो-कान्हू ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संथाल विद्रोह की शुरुआत की थी. यह दिन आदिवासी अस्मिता और बलिदान का प्रतीक माना जाता है.