
ईरान और इज़राइल के बीच 12 दिनों से जारी घमासान को लेकर एक बड़ी खबर सामने आई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि दोनों देशों ने आपसी सहमति से युद्धविराम यानी सीजफायर पर सहमति बना ली है.
इस घोषणा से जहां वैश्विक मंच पर राहत की उम्मीद जगी है, वहीं ईरान की ओर से आई प्रतिक्रियाएं इस समझौते की गंभीरता और स्थिरता को लेकर सवाल भी खड़े कर रही हैं.
सीबीएस न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, इज़राइल ने युद्धविराम पर सहमति तो जताई है लेकिन एक अहम शर्त के साथ—अगर ईरान भविष्य में उस पर कोई हमला नहीं करता, तभी यह सीजफायर प्रभावी माना जाएगा. वहीं, ईरानी अधिकारियों ने भी इस समझौते की पुष्टि की है लेकिन साथ ही अमेरिका और इज़राइल के इरादों पर अविश्वास जताया है.
ट्रंप ने की नेतन्याहू से सीधी बातचीत
सीजफायर की कोशिशों में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने व्यक्तिगत तौर पर हस्तक्षेप किया. उन्होंने इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से सीधे बातचीत की और इसके बाद इज़राइल ने इस युद्धविराम पर सैद्धांतिक सहमति दे दी. हालांकि इज़राइल की स्पष्ट शर्त यह है कि ईरान आगे कोई हमला नहीं करेगा, तभी समझौता कायम रह पाएगा.
ईरान-इज़राइल टकराव की वजह क्या थी?
इस पूरे युद्ध की चिंगारी तब भड़की जब इज़राइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाकर हमले किए. जवाबी कार्रवाई में ईरान ने भी इज़राइल के कई ठिकानों पर मिसाइलें बरसाईं. जब यह संघर्ष तेज हुआ तो अमेरिका ने भी इज़राइल का समर्थन करते हुए युद्ध में एंट्री ली और ईरान को निशाना बनाया.
अमेरिका ने निभाई मध्यस्थ की भूमिका
ट्रंप की ओर से युद्धविराम की पहल को पूरा आकार देने में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, विदेश मंत्री मार्को रुबियो और विशेष दूत स्टीव विटकॉफ की बड़ी भूमिका रही. इन अधिकारियों ने ईरानी पक्ष से सीधी और अप्रत्यक्ष बातचीत की, जिससे इस संघर्ष को रोकने की योजना तैयार की गई.
ईरान का एहतियात और संदेह बरकरार
हालांकि, अचानक की गई इस सीजफायर घोषणा पर ईरान की ओर से शंकाएं भी सामने आई हैं. एक वरिष्ठ ईरानी अधिकारी ने स्पष्ट किया कि “तेहरान को अमेरिका की ओर से कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं मिला है” और न ही उसे वाशिंगटन या इज़राइल के साथ दुश्मनी खत्म करने की कोई ठोस वजह दिखती है.
“अमेरिका और इज़राइल का भरोसा नहीं कर सकते” – ईरान
उसी अधिकारी ने कहा, “इस समय, दुश्मन ईरान के खिलाफ आक्रामकता कर रहा है, और ईरान अपने जवाबी हमलों को तेज करने की कगार पर है, और वो अपने दुश्मनों का झूठ सुनने को तैयार नहीं है.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि अमेरिका और इज़राइल के नेताओं के बयानों को वे “धोखा” मानते हैं, जिसका उद्देश्य ईरान पर और हमले को जायज़ ठहराना हो सकता है.
निष्कर्ष: क्या सचमुच थमेगी यह जंग?
इस पूरी स्थिति में जहां एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से युद्धविराम की घोषणा ने उम्मीद जगाई है, वहीं ईरानी पक्ष का संशय इस शांति प्रक्रिया को कमजोर करता दिख रहा है. क्या यह सीजफायर स्थायी होगा या फिर यह एक अस्थायी ठहराव है—यह आने वाले कुछ घंटे तय करेंगे.