
नई दिल्ली : इस्लाम धर्म में विशेष महत्व रखने वाला ईद-उल-अजहा, जिसे कुर्बानी की ईद भी कहा जाता है, इस्लामी कैलेंडर के अंतिम महीने जिल्हिज्जा की 10वीं तारीख को मनाया जाता है।
यह पर्व पैगंबर हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की अल्लाह के प्रति समर्पण की याद दिलाता है।
✦ हजरत इब्राहीम की कुर्बानी की मिसाल
इस पर्व का मूल उद्देश्य उस ऐतिहासिक घटना को याद करना है जब अल्लाह ने हजरत इब्राहीम को अपने बेटे हजरत इस्माइल की कुर्बानी का आदेश दिया।
जैसे ही उन्होंने आज्ञा मानकर बेटे की बलि देने की तैयारी की, अल्लाह ने इस त्याग को स्वीकार करते हुए बेटे की जगह एक भेड़ (दुम्बा) की कुर्बानी का आदेश दिया।
✦ कुर्बानी का असल मकसद: तकवा
मौलाना नजमुद्दीन अहमद कासमी के अनुसार, कुर्बानी केवल जानवर की बलि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ईमान अल्लाह के प्रति समर्पण का प्रतीक है। अल्लाह उस कुर्बानी को ही स्वीकार करता है, जिसमें तकवाशामिल हो।
✦ बाजारों में बढ़ी रौनक, बकरों की खरीदारी जोरों पर
ईद-उल-अजहा के नजदीक आते ही शहरों में बकरा मंडियों की रौनक बढ़ गई है। ₹15,000 से ₹55,000 तक के बकरे बिक रहे हैं।
लोग अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार कुर्बानी के लिए बकरे खरीद रहे हैं। जो लोग सक्षम हैं, वे तीनों दिन कुर्बानी अदा करते हैं।
✦ कुर्बानी के नियम: किन पर है फर्ज?
जिनके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी के बराबर संपत्ति है, उनके लिए कुर्बानी वाजिब (अनिवार्य) है।
यदि पति-पत्नी दोनों इस श्रेणी में आते हैं, तो दोनों को अलग-अलग कुर्बानी देनी होती है।
माता-पिता अगर इस मानदंड में नहीं आते, तो उन पर कुर्बानी आवश्यक नहीं।
कुर्बानी का क्रम: पहले जीवित परिजनों के नाम पर, उसके बाद मृत परिजनों के लिए अदा की जाती है।