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नई दिल्ली: सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत को विशेष रूप से सौभाग्य और वैवाहिक सुख की कामना से जोड़ा गया है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और पारिवारिक सुख-शांति के लिए करती हैं।
यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है, और इस वर्ष यह तिथि 26 मई, 2025 को पड़ी है।
वट वृक्ष की पूजा का महत्व
इस व्रत में वट (बड़) के पेड़ की पूजा की जाती है, जिसे अक्षय जीवन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं, धागा बांधती हैं और संकल्प लेकर व्रत करती हैं।
व्रत कथा का पाठ क्यों है आवश्यक?
शास्त्रों के अनुसार, व्रत तभी पूर्ण माना जाता है जब इसकी कथा का श्रद्धापूर्वक पाठ किया जाए। कथा न केवल प्रेरणा देती है, बल्कि उसमें छिपा आदर्श पतिव्रता धर्म का संदेश भी महिलाओं को शक्ति प्रदान करता है।
सावित्री और सत्यवान की अमर कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा अश्वपति और रानी मालवी को संतान नहीं थी। उन्होंने देवी सावित्री की तपस्या की, जिससे उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई, जिसका नाम सावित्री रखा गया।
सावित्री बड़ी होकर एक वनवासी युवक सत्यवान से विवाह करना चाहती थी, जिसकी उम्र कम थी। पिता की चिंता के बावजूद सावित्री ने उसी से विवाह किया।
जब सावित्री ने यमराज को भी विवश कर दिया
सावित्री जानती थीं कि सत्यवान की उम्र सीमित है, फिर भी उन्होंने अपने पति की सेवा और प्रार्थना में कोई कमी नहीं छोड़ी। एक दिन सत्यवान की मृत्यु हो गई और यमराज उनके प्राण लेने आए।
सावित्री ने उन्हें रोका और उनके पीछे-पीछे चलने लगीं। अपनी निष्ठा और पतिव्रत धर्म से प्रभावित कर उन्होंने यमराज से वरदान मांगे, और अंत में अपने पति के जीवन की याचना की।
अटल नारी शक्ति का प्रतीक
सावित्री की दृढ़ आस्था और सच्चे प्रेम ने यमराज को भी झुका दिया। उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दिया और सावित्री के सौभाग्य की रक्षा हुई। यही कारण है कि वट सावित्री व्रत आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है।