
नई दिल्ली: देश में आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर एक बार फिर संविधान की मूल आत्मा और उसकी प्रस्तावना को लेकर बहस छिड़ गई है.
इस बार चर्चा की शुरुआत आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के उस बयान से हुई जिसमें उन्होंने 42वें संविधान संशोधन के तहत जोड़े गए ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ जैसे शब्दों को हटाने पर विचार की वकालत की.
होसबोले के बयान के बाद विपक्षी खेमे में खलबली मच गई. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से लेकर शिवसेना (उद्धव गुट) के संजय राउत और आदित्य ठाकरे तक ने इस बयान की तीखी आलोचना की. वहीं, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने होसबोले के बयान का समर्थन कर इस राजनीतिक आग में घी डालने का काम किया.
क्या बोले दत्तात्रेय होसबोले?
आरएसएस में नंबर दो माने जाने वाले दत्तात्रेय होसबोले ने कहा, “आपातकाल के दौरान भारत के संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलरिज़्म और सोशलिज्म जैसे शब्द जोड़े गए थे.
बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा लिखी गई मूल प्रस्तावना में ये शब्द नहीं थे. अब इस बात पर विचार होना चाहिए कि क्या ये शब्द प्रस्तावना में बने रहें.” उन्होंने आगे कहा, “इन दो शब्दों को जोड़ने के बाद इन्हें हटाने की कोई कोशिश नहीं हुई. इस पर बहस होनी चाहिए.”
राहुल गांधी का तीखा हमला
होसबोले के बयान के बाद राहुल गांधी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “आरएसएस का नकाब फिर से उतर गया. संविधान इन्हें चुभता है क्योंकि वो समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है. इन्हें मनुस्मृति चाहिए. ये बहुजनों और गरीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा गुलाम बनाना चाहते हैं. संविधान जैसे हथियार को छीनना इनका असली एजेंडा है. हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे.”
शिवसेना और विपक्ष का गुस्सा
शिवसेना (उद्धव गुट) के सांसद संजय राउत ने कहा, “आपातकाल के दौरान आरएसएस ने विरोध नहीं किया था, बल्कि चुपचाप समर्थन किया था. अब संविधान पर सवाल उठाकर वो खुद को उजागर कर रहे हैं.” वहीं, आदित्य ठाकरे ने इसे महाराष्ट्र के भाषा विवाद से ध्यान भटकाने की कोशिश बताया.
शिवराज सिंह चौहान ने क्या कहा?
पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी होसबोले की बात का समर्थन किया. उन्होंने कहा,
“सर्व धर्म समभाव भारतीय संस्कृति का मूल है. धर्मनिरपेक्षता शब्द हमारी संस्कृति में नहीं था. समाजवाद की जरूरत भी नहीं है. देश को अब इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.”
क्यों फिर चर्चा में है प्रस्तावना?
1976 में आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े गए थे. कई विचारकों और संगठनों का मानना है कि इन शब्दों ने संविधान की मूल भावना में हस्तक्षेप किया. हालांकि, इन शब्दों को भारतीय लोकतंत्र और विविधता की आत्मा से भी जोड़कर देखा जाता है.
निष्कर्ष
संविधान को लेकर बहस कोई नई नहीं, लेकिन इस बार मुद्दा बेहद संवेदनशील और राजनीतिक रूप से विस्फोटक है. जब आरएसएस जैसे प्रभावशाली संगठन के शीर्ष पदाधिकारी संविधान के शब्दों को हटाने की बात करते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि राजनीति में भूचाल आए.
अब यह देखना होगा कि आने वाले समय में यह बहस केवल विचार तक सीमित रहती है या संसद तक पहुंचती है.