
India Census 2027: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को देश की 16वीं जनगणना 2027 के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. इस बार जनगणना के साथ जातीय जनगणना भी कराई जाएगी. जनगणना दो चरणों में संपन्न होगी. यह आज़ादी के बाद की आठवीं और कुल 16वीं जनगणना होगी.
अमित शाह ने दिल्ली में केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ तैयारियों की समीक्षा की थी. जनगणना की तारीख लद्दाख व पहाड़ी क्षेत्रों में 1 अक्टूबर 2026 जबकि देश के अन्य हिस्सों में 1 मार्च 2027 तय की गई है. अधिसूचना सोमवार को राजपत्र में प्रकाशित कर दी गई है, जिससे आधिकारिक प्रक्रिया शुरू हो गई है.
जाति जनगणना का इतिहास:
भारत में पहली बार जातिगत जानकारी 1871 की जनगणना में दर्ज की गई थी, जब ब्रिटिश सरकार ने सामाजिक विभाजन को समझने के लिए ऐसा किया था. स्वतंत्रता के बाद भी 1931 की जनगणना आखिरी बार थी जब भारत सरकार ने सभी जातियों का आंकड़ा इकट्ठा किया.
इसके बाद SC/ST डेटा तो लिया जाता रहा, लेकिन ओबीसी और अन्य जातियों की गणना बंद हो गई. 2011 में यूपीए सरकार ने ‘सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना’ (SECC) करवाई, लेकिन उसके आंकड़े आज तक सार्वजनिक नहीं किए गए.
अब क्यों हो रही है जाति आधारित जनगणना?
हाल के वर्षों में ओबीसी आरक्षण, सामाजिक न्याय और जाति आधारित लाभों को लेकर मांग बढ़ी है कि सरकार सही डेटा सार्वजनिक करे. बिहार ने 2023 में अपनी जाति आधारित सर्वे प्रकाशित कर एक मिसाल कायम की. इसके बाद केंद्र सरकार पर दबाव बना कि वो 2025 की जनगणना में जातिगत डेटा भी शामिल करे.
गृह मंत्रालय ने हाल ही में संकेत दिया है कि जनगणना 2025 से शुरू होगी और इसमें ‘जातिगत विवरण’ को पहली बार डिजिटल फॉर्म में भी एकत्र किया जाएगा.
इस बार क्या होगा अलग?
डिजिटल जनगणना: मोबाइल ऐप और टैबलेट से जनगणना अधिकारी डेटा इकट्ठा करेंगे. पेपरलेस प्रक्रिया को पहली बार अपनाया जाएगा.
आधार और मोबाइल से लिंकिंग: हर नागरिक का डेटा आधार, मोबाइल और लोकेशन से लिंक होगा, ताकि डुप्लीकेसी न हो.
जातिगत पहचान: पिछली बार की तरह केवल SC/ST नहीं, बल्कि सभी जातियों का वर्गीकरण किया जाएगा.
रियल टाइम मॉनिटरिंग: जनगणना की मॉनिटरिंग एक केंद्रीकृत पोर्टल से होगी, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी.
डेटा का उपयोग: इस बार सरकार कल्याणकारी योजनाओं, रिजर्वेशन नीति और सामाजिक-आर्थिक आंकलन के लिए इस डेटा को पब्लिक डोमेन में लाने की बात कह रही है.
राजनीतिक महत्व:
जाति जनगणना का सीधा संबंध राजनीति और आरक्षण व्यवस्था से है. पार्टियां इस मुद्दे को लेकर ओबीसी वोट बैंक को साधना चाहती हैं. कुछ दल लंबे समय से मांग कर रहे थे कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाए — जिसके लिए जातिगत डेटा अनिवार्य है.
चुनौतियां:
सभी जातियों की पहचान और वर्गीकरण करना एक बड़ा प्रशासनिक कार्य होगा.
डेटा के दुरुपयोग की आशंका भी जताई जा रही है.
सामाजिक तनाव या भेदभाव की संभावनाएं भी उठाई जा रही हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां जातीय असंतुलन अधिक है.
निष्कर्ष:
जाति आधारित जनगणना भारत के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकती है. इससे नीतियों की योजना बनाने में सरकार को सटीक आधार मिलेगा, वहीं आरक्षण व्यवस्था को लेकर वर्षों से जारी बहस को भी नया दिशा मिल सकता है.
2025 की यह जनगणना न सिर्फ तकनीक और पारदर्शिता के नए युग की शुरुआत करेगी, बल्कि सामाजिक न्याय के सवाल को भी नई ऊर्जा देगी.