
नई दिल्ली: भारत के न्यायिक इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। सुप्रीम कोर्ट के 52वें चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने शपथ ग्रहण कर ली है। राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
जस्टिस गवई ने देश के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश बनने का गौरव प्राप्त किया है और वे आजादी के बाद दलित समुदाय से देश के दूसरे सीजेआई हैं।
कार्यकाल और प्रमुख जिम्मेदारियाँ
जस्टिस बीआर गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा, जो 23 नवंबर 2025 को समाप्त होगा। चीफ जस्टिस बनने के तुरंत बाद उन्होंने वक्फ कानून में संशोधन को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है। उनकी न्यायिक यात्रा न केवल एक प्रेरणा है बल्कि सामाजिक न्याय और सकारात्मक सोच का प्रतीक भी है।
बचपन और प्रारंभिक जीवन
जन्म और शिक्षा:
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। वे अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई महाराष्ट्र के एक प्रमुख राजनेता थे, जो सामाजिक न्याय और अंबेडकरवादी विचारधारा के समर्थक थे।
जस्टिस गवई का बचपन अमरावती की झुग्गी में बीता, जहां सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।उनकी मां कमलाताई ने उनके पालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि उनके पिता अक्सर राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहते थे।
पिता का राजनीतिक योगदान
रामकृष्ण सूर्यभान गवई महाराष्ट्र के दिग्गज नेता थे और 1964 से 1994 तक महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे।वे विधान परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विपक्ष के नेता भी रहे। 2006 में बिहार के राज्यपाल बनाए गए, और इसके अलावा वे सिक्किम और केरल के भी राज्यपाल रहे। उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापना की।
न्यायिक सफर: संविधान और सामाजिक न्याय का समर्थन
जस्टिस गवई ने हमेशा संविधान को सर्वोपरि माना है। 2024 में एक भाषण में उन्होंने कहा था कि डॉ. अंबेडकर के प्रयासों का ही परिणाम है कि एक झुग्गी के स्कूल से पढ़कर वे सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच सके। उन्होंने अपना भाषण ‘जय भीम’ के नारे के साथ समाप्त किया था।
महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले
जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट में कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की और साहसिक फैसले सुनाए:
राजनीतिक मामले:
न्यूजक्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मामले में यूएपीए और मनी लॉन्ड्रिंग कानूनों पर फैसला।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले में सजा पर रोक लगाने वाले बेंच में शामिल रहे।
संपत्ति विध्वंस पर फैसला:
नवंबर 2024 में बिना उचित प्रक्रिया के संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने को रूल ऑफ लॉ के खिलाफ माना।
आरक्षण में आरक्षण का समर्थन:
अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण में आरक्षण के समर्थन में वकालत करते हुए सात जजों की संविधान पीठ में शामिल रहे।
बौद्ध धर्म और सामाजिक न्याय का समर्पण
जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश हैं। उनके पिता ने डॉ. अंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और संविधान की सर्वोच्चता पर उनका दृढ़ विश्वास उनके न्यायिक दृष्टिकोण में साफ दिखाई देता है।
निष्कर्ष
जस्टिस बीआर गवई का जीवन संघर्ष, सकारात्मकता और न्याय के प्रति समर्पण का प्रतीक है। अमरावती की झुग्गी से भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने तक का उनका सफर न केवल प्रेरणादायक है बल्कि देश के हर नागरिक को यह संदेश देता है कि संघर्ष और कड़ी मेहनत से कोई भी ऊँचाई प्राप्त की जा सकती है। जस्टिस गवई का कार्यकाल न्यायपालिका में सामाजिक न्याय और संविधान की सर्वोच्चता को और मजबूत करेगा।